लोग रौशनी से नजरें चुराने लगे हैं-
सच बोलने में कतराने लगे हैं -
मासूमियत झलकती थी जिन आँखों में
अंगारे वे अब बरसाने लगे हैं-
मुफ़लिसी में जिनके दिन गुजरे थे कल तक
सियासत पर परचम अपनी लहराने लगे हैं-
मुल्क की तरक्की से जिनको नहीं मतलब
इलेक्शन में गाल खुद की बजाने लगे हैं-
किस किस को हम 'अनुरागी' कहें
दहशत हर घर में फैलाने लगे हैं-
सच बोलने में कतराने लगे हैं -
मासूमियत झलकती थी जिन आँखों में
अंगारे वे अब बरसाने लगे हैं-
मुफ़लिसी में जिनके दिन गुजरे थे कल तक
सियासत पर परचम अपनी लहराने लगे हैं-
मुल्क की तरक्की से जिनको नहीं मतलब
इलेक्शन में गाल खुद की बजाने लगे हैं-
किस किस को हम 'अनुरागी' कहें
दहशत हर घर में फैलाने लगे हैं-
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