दुनिया के नज़ारे देख हैरान हूँ मैं,
कदम कदम पर फरेब परेशांन हूँ मैं.
जायका बदल गया है हर खाने का ,
मिलावटखोरों के घर का शैतान हूँ मैं.
गरीब कैसे पिस रहे सियासत के खेल मैं ,
कुछ कह नहीं सकता बेजुबान हूँ मैं .
आया है अस्पताल तो जिन्दगी की दुआ कर ,
हकीम के हाथ में मौत का सामान हूँ मैं.
जेब अगर खाली है तो भाग यहाँ से ,
हाकिम के दफ्तर का फरमान हूँ मैं.
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