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शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

दुनिया के नज़ारे देख हैरान हूँ मैं



दुनिया  के  नज़ारे  देख  हैरान  हूँ  मैं,
कदम  कदम  पर फरेब परेशांन हूँ  मैं.

जायका   बदल   गया  है   हर   खाने   का ,

मिलावटखोरों  के  घर  का  शैतान हूँ  मैं.

गरीब  कैसे पिस रहे  सियासत के खेल मैं , 
कुछ   कह  नहीं  सकता   बेजुबान   हूँ  मैं .

आया  है अस्पताल तो जिन्दगी की दुआ कर ,
हकीम  के  हाथ  में  मौत  का  सामान  हूँ  मैं.

जेब  अगर  खाली है  तो  भाग  यहाँ  से ,

हाकिम   के   दफ्तर   का   फरमान   हूँ  मैं.

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