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मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

सारे जग से न्यारा, क्या हिंदुस्तान हमारा है ?

   लुट  रही जहां मानवता,ये  सवाल  हमारा है .
 सारे जग से न्यारा, क्या  हिंदुस्तान हमारा है ?

बुद्ध,कृष्ण,नानक ने जिनको प्रेम परोसा है,
लड़ते हैं वही आपस में,नहीं भाई पर भरोसा है

धर्मग्रंथों की आड़ में खून  की  होती होली   है ,
परस्पर मेल नहीं सुहाता जिनको,छूटती उनसे गोली है .
                   निरपराध  को कर बंद जेल में,कहते 'यही हत्यारा है,'
                    सारे    जग   से न्यारा,  क्या  हिंदुस्तान   हमारा है ?

कुंठित जीवन  हैं हम जीते,  नहीं  कहीं  उजियारा  है,
अखंड भारत में बही अब अशांति की अविरल धारा है.
निस्वार्थ  रहा  नहीं राग  में,स्वार्थ  बना अब  नारा है.
विकास   की  अंधी  दौड़  में, मानव   बना   बेचारा  है.
                        भंवर में  डूब रही नाव ,नहीं  कहीं किनारा  है,
                        सारे जग से न्यारा, क्या  हिंदुस्तान हमारा है ?

अखंड भारत को खंडित कर ,यह विप्लव मत बसाओ तुम,
  हिंसा का   तांडव रोको ,प्रेम सुमन अब बिखराव तुम.
रोजगार  के  अवसर  नहीं ,यह  दुर्भाग्य  हटाओ  तुम ,
निर्बल   का   उत्थान  करो,उसे   गले   लगाओ   तुम .
                               आशा का  संचार  नहीं,न हीं कोई  सहारा  है,
                              सारे जग से न्यारा, क्या  हिंदुस्तान हमारा है ?        

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