शनिवार, 10 नवंबर 2012

द्रुत विकास के झूठे नारों से,दुर्गति देश की कर बैठे




द्रुत विकास के झूठे नारों से, दुर्गति देश की कर बैठे .
भ्रष्टाचार की बहती आंधी में, झोला अपना भर बैठे.



केजरी  बहकाए  जनता  को, पर ना  सुधरेंगे  हम कभी,
भ्रष्टाचार विरोधी अन्दोलनों से,भले थोड़ा सा हम डर बैठे.



भ्रष्ट  तंत्र  की ताकत को, दुनिया  देख  रही भारत में,
सच को झूठ बनाकर,राजा,कलमाड़ी को बाहर कर बैठे.



हमारे ठाठ में न रहे कमी,रहना सदा हमारे झांसे में,
डर हमको केवल इतना है,वोटर हमारे मुकर ना बैठे.


जनता के पैसे की लूट मचाने,हम जमें हैं सत्ता में,
हम लुटेरों के वंशज हैं,ये सच अब बयां हम कर बैठे . 

कुंडलियाँ

प्रजातंत्र के इस दौर में,आ गयी है मौज.
भ्रष्टाचार,दलाली में, लगी लुटेरों की फ़ौज,
लगी लुटेरों की फ़ौज,देश हो रहा बदनाम.
मंहगाई के बोझ से, जीना हुआ हराम.
देखत कवि ‘अनुरागी’,सत्ता का ये मंत्र.
नेता दलाल मौज में,बंधक बना प्रजातंत्र.

भारत के लोकतंत्र में,जनता हुई हलाल,
होते रोज घोटालों से,लुटता देश का माल.
लुटता देश का माल,अब क्या होगा भाई,
देश डूबे घोटालों में,नेता चाट रहे मलाई.
रोवत कवि ‘अनुरागी’,देख सत्ता के धंधे,
पब्लिक चिल्लाये सड़कों पे,नेता हो गए अंधे.

राजनीति के घाट पर,लगी लोकतंत्र को ठण्ड,
नित नए घोटालों से ,मिला जनता को दंड.
मिला जनता को दंड, डायन मंहगाई खा गयी,
सत्ता के दलालों को,घोटालों की दुनिया भा गयी.
दुखी कवि ‘अनुरागी’, अब कौन सुने आपबीती,
नैतिकता,सदाचार को, खा गयी पूरी राजनीति.

बुधवार, 12 सितंबर 2012

‘इंडियन’ या ‘इडियट’



ब्रिटेन से बाहर निकलकर अंग्रेज जहां जहां भी साम्राज्य के विस्तारीकरण के लिए गए. वहां उन्होंने खुद को न केवल सभ्य बताया बल्कि साथ ही स्थानीय लोगों को अपनी आदत के अनुसार हमेशा असभ्य,मूर्ख ही घोषित किया. यही नहीं उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार भी किया. स्थानीय निवासियों को ‘इडियट’ कहकर अपमानित करते हुए अंग्रेजों ने बाद में उन्हें अपने दस्तावेजों में इस शब्द में मामूली परिवर्तन कर वहां के आदिवासियों के लिए ‘इंडियन’ भी लिखना शुरू कर दिया. 
 अमेरिका के काले मूल आदिवासी नागरिक जिन्हें ‘हब्सी’ भी कहा जाता है. विश्व भर में अंग्रेजों द्वारा प्रचलित तथाकथित नवीन सभ्यता में उन्हें ‘सेमीनोले इंडियन’ के नाम जाना जाता है. उन्हें न केवल ह्येय दृष्टि से देखा गया अपितु उन पर अंग्रेजों द्वारा अत्याचार भी बहुत किये गए. सभ्यता के प्रतीक  कहे जाने वाले अमेरिका में मानवाधिकारों से भी उन्हें कई दशकों तक वंचित भी रखा गया. 
इसी तरह उत्तरी अमेरिका में भी तथाकथित असभ्य अन्य मूल आदिवासियों को ‘रेड इंडियन’, अफ्रीका में मूल आदिवासियों को ‘ब्लेक इंडियन’ कहा. जब अंग्रेजों ने भारत का रुख किया तो उन्हें यहाँ के लोग भी ‘इडियट’ ही नजर आये. ब्रिटिश शासन काल में अंग्रेजों ने यहाँ की जनता को अपनी ह्येय मानने की दृष्टि के मानसिकता के कारण देश के कई स्थानों पर “डॉग एंड इंडियन नॉट अलाउड” के बोर्ड लगा दिए थे. क्योंकि अंग्रेज मानते थे कि पश्चिमी सभ्यता के मुकाबले ये भारतीय अत्यधिक असभ्य,अशिक्षित और बुद्धिहीन हैं. इसीलिये अंग्रेजों ने भारतीयों के लिए भी अमेरिका,अफ्रिका के मूल आदिवासियों की तरह यहाँ के निवासियों को भी ‘इडियट’ या ‘इंडियन’ ही कहना शुरू कर दिया. ‘इंडियन’ शब्द का मूल ‘इडियट’ ही है. साफ़ जाहिर है  ‘इंडियन’ से ही ‘इंडिया’ की उत्पत्ति हुई ना कि ‘इंडिया’ में रहने वालों के कारण ‘इंडियन’ शब्द की. सवाल ये है कि अगर भारतीय ही इंडियन हैं तो फिर अमेरिका,अफ्रिका के मूल निवासियों को ‘सेमीनोले इंडियन’,‘रेड इंडियन’, ‘ब्लेक इंडियन’ क्यों कहा गया? सवाल ये भी है कि ये 'इंडियन' शब्द अंग्रेजों ने हर जगह किस उद्देश्य से प्रयोग किया ? 


बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि आज भी हम अंग्रेजों द्वारा दी गयी सिर्फ सत्ता हस्तांतरण की राजनीतिक आजादी के बाद भी मानसिक,बौद्धिक रूप से पश्चिमी सभ्यता के अनुकरण में बुरी तरह जकड़े हुए हैं. हम आज भी अपमान का प्रतीक ‘इंडियन’ शब्द को तिलांजलि देने के बदले उसपर गर्व करते नहीं थक रहे हैं. 

गुरुवार, 5 जुलाई 2012

जनप्रतिनिधि कानून और चुनाव सुधार

         

          स्वस्थ लोकतान्त्रिक प्रणाली को चलाने के लिए चुनाव सुधार और जनप्रतिनिधि कानूनों में सुधार या संशोधन एक सतत प्रक्रिया है.जिसमें समय की आवश्कतानुसार संसद में ऐसे संशोधन अथवा नए कानून बनाए जाते हैं,जो लोकतान्त्रिक व्यवस्था को सुदृढ़ ही ना करें अपितु जिसमें जनता की आंकाक्षाओ का भी सम्मान हो.

भारत में चुनाव सुधारों के नाम पर आज तक जितने भी चुनाव-सुधार कानून बने या सशोधित किये गए हैं वे समय कि कसौटी पर खरे नहीं उतारे हैं. दलबदल कानून राजनितिक दलों के लिए सरकार बनाने में सहायक ही सिद्ध हुए हैं. इस कानून से एक तिहाई की संख्या में तोड़ने,खरीदने की खुली छूट मिल गयी है. चुनाव-सुधार के नाम पर किये गए ९१वां संविधान संशोधन में दलबदल करने पर संसद या विधानसभा में ३३% से कम सदस्यों पर देखने में भले ही प्रतिबन्ध लगाया हो लेकिन इससे खरीद फरोक्त,गोपनीय समझौतों से दलबदल कराने,करने में कोई कमी नहीं आयी है. जनप्रतिनिधि कानूनों में अब तक के संशोधनों से अपराधियों,भ्रष्ट लोगों का राजनीति में प्रवेश और भी आसान हो गया है. इससे लोग जेल में रहकर भी चुनाव लड़ और जीत सकते हैं. पहले जिनके पीछे पुलिस रहती थी. जनप्रतिनिधि चुने जाने के बाद पुलिस को उनकी सुरक्षा करनी पड़ती है. कारण साफ़ है.  जनप्रतिनिधि कानूनों में सुधार आधे अधूरे मन से किये जाते हैं और जानबूझकर कानून में ऐसी त्रुटियाँ छोड़ दी जाती हैं जिससे उसका प्रभाव राजनीतिज्ञों,राजनीतिक दलों के हितों पर ना पड़ सके.

        चुनाव सुधारों के सम्बन्ध में अब तक प्रयासों को देखा जाय तो उससे राजनीतिक दलों की इच्छाशक्ति की ही पोल खुलती है दो वर्ष पूर्व के जनप्रतिनिधि अधिनियम में हुए संशोधन देखकर तो यही लगता है. इस संसोधन चुनाव में खड़े होने वाले प्रत्याशियों की जमानत राशि में वृधि कर लोकसभा चुनाव के लिए १०,००० से बढ़ाकर १५,००० विधान सभा में ५,००० से बढ़ाकर १०,००० रुपये की गयी है इसी तरह चुनाव में प्रत्यासियों द्वारा खर्च की जाने वाली राशि को भी कुछ बढ़ाया गया है. समझ में नहीं आता कि सिर्फ इतने मामूली संसोधन से लोकतंत्र को कैसे और कहाँ मजबूती मिलेगी ? ऐसे संसोधनों से ना तो राजनीति का अपराधीकरण रुक सकता है और न ही व्यवस्था में सुधार होगा.

        चुनाव सुधारों के सम्बन्ध में कुछ विचार यहाँ दिए जा रहे हैं ,जिनकी ओर ध्यान दिया जाय तो सुधार की कुछ उम्मीद बन सकती है. संसद या विधान सभाओं में इन पर क़ानून बनाना तो दूर कभी गंभीर चर्चा तक नहीं हुयी है. सत्ता पक्ष हो या विपक्ष आखिर मौसेरे भाई ही तो हैं. वे क्यों खुद पाने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना चाहेंगे ? जनता,मीडिया के दबाव में आकार अगर कभी उन्हें प्रभावी ठोस कानून बनाना पड़े तो उससे पहले ही वे अपने बचाव के लिए क़ानून में खामियां छोड़ना नहीं भूलते. इसका ताजा उदाहरण हाल ही में संसद में पेश जनलोकपाल बिल की मौजूदा स्थिति है.जनभावनावों के विपरीत जाकर सरकार ने प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के टुकड़े टुकड़े कर बिल को प्रभावहीन करने की पूरी साजिश की है. सरकार और विभिन्न दलों के राजनेताओं,संसद सदस्यों द्वारा प्रस्तावित जनलोकपाल बिल पर किये गए आचरण ने उनकी प्रतिष्ठा को अत्यधिक हानि पहुंचाई है. जिसकी भरपाई अब निकट भविष्य में होनी मुश्किल है.

          जन प्रतिनिधियों के लिए न्यूनतम शेक्षिक योग्यता रखने का प्रस्ताव काफी समय से लंबित है. क्योंकि आज के सन्दर्भ में शिक्षित जनता का प्रतिनिधत्व अशिक्षित,विवादित जनप्रतिनिधि करें, लोकतंत्र का इससे बड़ा अपमान और क्या हो सकता है ?

           हमारे देश में लोकतंत्र बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था पर आधारित है. दल विशेष की नीतियों के नाम पर मतदाताओं से मत मांगे जाते हैं. प्रत्येक राजनीतिक दल अपनी पार्टी की नीतियों ,विचारों को घोषणा पत्र के माध्यम से मतदाताओं के समक्ष रखता है जिसके आधार पर मतदाता प्रत्याशी को वोट देता है अगर दल विशेष का प्रत्याशी जनप्रतिनिधि बनकर निजी राजनीतिक स्वार्थ के लिए दल बदल कर उस विचारधारा,धोषणाओं को त्याग देता है जिसके आधार पर उसे जनता ने चुना है, तो यह निश्चित ही मतदाताओं के साथ धोखाधड़ी होगी. खेद है कि जनप्रतिनिधि के ऐसे कृत्य को अपराध की श्रेणी में रखने के बदले उसे ‘माननीय’बना दिया जाता है.
          दलबदल के समस्या को समाप्त करने और जनभावनाओं का सम्मान करने के लिए आवश्यक है कि चुना गया जनप्रतिनिधि पुरे कार्यकाल में उसी दल से संबद्ध रहे. अगर वह अपनी दलीय निष्ठा बदलना चाहता है तो सम्बंधित दल या गठबंधन से त्यागपत्र देकर नए दल की नीतियों के आधार पर पुनः मतदाताओं से जनादेश प्राप्त करना चाहिए. मतदाताओं की दलीय निष्ठा व समर्थन को व्यतिगत निष्ठा में बदलने का अधिकार जनप्रतिनिधि को न संवैधानिक है और ना ही  नैतिक.
     उम्मीदवार के दो स्थानों से चुनाव लड़ना व जीतना फिर किसी एक चुनाव क्षेत्र से त्यागपत्र देना उस चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं के साथ जहाँ एक ओर विश्वासघात है, वहीँ यह सरकारी धन के खुलेआम दुरूपयोग का भी नमूना है. संसदीय एवं विधानसभाओं चुनावों इससे सरकारी धन का ही नहीं उस चुनाव क्षेत्र में अन्य उम्मीदवारों का भी काफी धन व समय नष्ट हो जाता है. 

          दो स्थानों से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार अक्सर भारतीय राजनीति के वे धुरंधर खिलाड़ी होते हैं जो किसी भी कीमत पर हार कि कोई संभावना नहीं रखना चाहते या जीत की संभावना को बढ़ा देना चाहते हैं. उन्हें पता है कि उनकी इस विजय-लिप्सा के कारण जनता व सरकारी मशीनरी दोनों को भारी हानी होती है. लेकिन उन्हें इसकी प्रेरणा संविधान की दुर्बलताओं के कारण मिलती है. 

           केंद्र व राज्यों में दल विशेष को पर्याप्त बहुमत न मिलने के कारण गठबंधन सरकारों का दौर चल पड़ा है .राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते ऐसी सरकारें  कभी कभी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाती हैं ऐसी स्थिति में मध्यावधि चुनाव देश की विकास प्रक्रिया को अवरुद्ध कर देती है साथ ही अरबों रूपों का व्ययभार भी देश की अर्थव्यवस्था पर बोझ बनकर आ जाता है. चुनाव अधिघोषणा से लेकर चुनाव प्रक्रिया पूर्ण होने तक विकास के भी लगभग ठप्प हो जाते हैं.इं परिस्थितियों से भी बचने की आवश्कता है गठबंधन सरकारों के इस युग में एक हाथ से समर्थन देने और दूसरे हाथ से समर्थन वापस लेने की कुटिलता राजनीतिक दलों के लिए सामान्य सी बात हो गयी है सरकार को समर्थन देते समय समर्थन की समय-सीमा स्पष्ट उल्लेख न करना व ‘बाहर से समर्थन देना’ राजनीतिक दलों की इसी कुटिलता को दर्शाता है. हर हालत में निर्वाचित संसद और विधानसभाएं अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा करें इसकी व्यवस्था संविधान में होनी चाहिये. जरूरी नहीं है कि दलीय स्थिति में बड़े परिवर्तन हो ही जाए.
          विश्व के कई देशों में जनता की इच्छाओं के अनुरूप कार्य न करने वाले जनप्रतिनिधियों को प्रतिनिधिसभा से वापस बुलाने का प्रावधान उनके संविधान में किया गया है, जबकि भारत में इस पर अभी विचार भी नहीं किया गया है. हमारे देश में लोकतंत्र का स्वरुप लगातार विकृत होता जा रहा है. देश की जनता को अकर्मण्य,विवादित,भ्रष्ट जनप्रतिनिधियों को पुरे कार्यकाल तक झेलना पड़ता है. इससे न केवल उस क्षेत्र का विकास पिछडता है बल्कि क्षेत्र  की समस्याओं का समय पर समाधान न होने से जन समस्याएं और अधिक बढ़ जाती हैं.

          लोकतंत्र  का आधार मतदान है, तो प्रतिनिधित्व  का आधार बहुमत है. हमारे यहाँ विडम्बना यह है कि कम व सिमित मतदान में भी लोकतंत्र पैदा कर दिया जाता है. जबकि इसके लिए कुल मतदाताओं का ५१% मतदान अनिवार्य होना चाहिए. 

राजनितिक दलों में कितने भी मतभेद हों लेकिन उनमें सरकारी खजाने से चाव खर्च की मांग करने एवं सांसदों,विधायकों  के वेतन भत्ते व अन्य सुविधाएँ बढ़ाने में कोई मतभेद आज तक सामने नहीं आया है. जब जनता को सुविधाएँ बढ़ाने की बात आती है तो इन्हीं  जनप्रतिनिधियों के ढेरों कुतर्क,विवशताएं सामने आ जाते हैं.

        भ्रष्टाचार और काले धन ने आज के समय में राजनीतिज्ञों में अपनी जड़ें मजबूत कर ली हैं. राजनीतिज्ञों,जनप्रतिनिधियों की छवि जनता की नज़र में लगातार गिरती जा रही है. जनता अब राजनीति का शुद्धिकरण चाहती है वह चाहती है कि राजनीति में वे ही लोग आगे आकर उनका प्रतिनिधित्व करें जो न तो भ्रष्टाचार या अन्य आपराधिक मामलों में विवादित हों और न ही जिनकी छवि किसी कारण धूमिल हो.
                          चुनाव सुधारों के नाम पर आज तक जो भी प्रयास किये गए हैं वे सभी ढोंग व नकारा ही साबित हुए हैं. हमारे राजनीतिज्ञों में अभी वह इच्छाशक्ति जागृत ही नहीं हुई है जो स्वच्छ लोकतंत्र को नई दिशा दे सके. भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनता के विरोध की जैसी बयार वर्तमान में हमारे देश में चल रही है. वह भविष्य में क्या सकारात्मक परिणाम देगी कहना मुश्किल है.                             

गुरुवार, 8 मार्च 2012

जब मस्ती लेनी हो होली में


         जब मस्ती लेनी हो होली में,
     तो  आजा  मेरी  खोली में.


     इशारों से अब काम न चलेगा,
     कर  लो  बातें  बोली  में .


     कीचड़ में अब हाथ ना डालो,
     गुलाल  छुपा  है  चोली  में. 


     दिल से दिल का भेद मिटा दो,
     प्यार   बढाओ  होली  में.
 

     राजनीति की अब बातें छोड़ो,
     फाग  सुनाओ  टोली  में.


     बैरी को भी गले लगा लो,
     यार  बना  दो  होली में.

शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

लघुकथा

                                         भूकंप पीड़ित
उन चारों आवारा किस्म के नवयुवकों को देखकर मुझे आज प्रसन्नता ही हुई. मुझे लगा कि समाचारपत्रों,टीवी में भूकंप पीड़ितों की दशा सुनकर इनके दिल में भी अब मानवता की भावना जाग्रत हो चुकी है. तभी तो वे बड़ी तत्परता से शहर में घूम-घूम कर देश के एक क्षेत्र में आये भयंकर भूकंप से पीड़ित लोगों के लिए धन एकत्र करने में लगे हुए थे. उनके पास एक कनस्टरनुमा डिब्बा था. डिब्बे के उपरी हिस्से में एक सुराख था जिसमें लोग  रुपये, सिक्के डालते जाते थे, डिब्बे पर लिखा था –“भूकम्प राहत कोष “.
मानवता  के प्रति उनकी सदाशयता का में कायल हुआ. मैंने भी एक पाँच रुपये  का नोट निकालकर डिब्बे के हवाले कर दिया.
सदा की भांति में शाम को शहर के किनारे कम भीड़ भाड़ वाली जगह पर स्थित एक होटलनुमा ढाबे
की ओर चला गया. इसी ढाबे के ठीक सामने अंग्रेजी शराब की दूकान भी थी. ठेके से एक 'अद्धा' लेकर
मैं ढाबे के एक कोने में बैठकर अपने कार्यक्रम में व्यस्त हो गया.
-“यार, आज तो खाली पकौड़े,नमकीन से काम नहीं चलेगा .आज की कमाई अच्छी रही पुरे आठ सौ रूपये डिब्बे से निकले हैं, मेरी मानो तो आज चार तंदूरी मुर्गे का भी आर्डर दे दो.”
आवाज सुनकर जब में घूमा तो मेरी नजर उन्हीं चार लडकों पर पड़ी जो भूकंप पीड़ितों के लिए पैसे इकट्ठे
कर रहे थे, उनमें से एक यह कहता हुआ ‘एरिस्ट्रोक्रेट’ की बोतल का ढक्कन खोल रहा था.
भूकम्प राहत कोष का डिब्बा बैंच के नीचे पड़ा हुआ था, उसे देखते हुए मुझे अपने ‘अद्धे’ का असर
खत्म होता हुआ सा महसूस हुआ.                 



                     

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

कुण्डलियाँ

         

                              लाठी  मेरी  देखा  कर ,भैंस  रह गयी  दंग,
                     शक्तिवान  सावंत  तुम,चल  रही हूँ  संग.
                     चल  रही हूँ संग,लाठी की  ताकत   न्यारी.
                     सबल के बल पौरुष से ,निर्बल चली बेचारी.
                     कह कवि 'अनुरागी',जग की यही परिपाटी ,
                     होगी भैंस उसी  की ,हाथ में  जिसके  लाठी .



                मक्खन में गुण बहुत हैं ,सभी जानते आज.
                सभी जगह पूजते फिरें, जो हैं  मक्खनबाज .
                जो  हैं  मक्खनबाज,उन्हीं  का आज ज़माना  ,
                वही   मजे   में, जो   मक्खन   का   दीवाना .
              कहे  कवि ' अनुरागी' आप  भी  मक्खन  लीजे ,
             सफल जीवन के लिये,मक्खन की मालिश कीजे.



           कवि  सम्मलेन  के  मंच  पर ,आओ  खेलें  होली .
           छंद   करें  स्वच्छंद , फाड़  कविता  की  चोली.
           फाड़   कविता  की  चोली, घिसें  शब्दों  के  पेड़ ,
           कविता  बांचे  हास्य  की , मार  श्रोता  की  रेड़.
            कहे  कवि 'अनुरागी', मिले  जीवन  का  मृदुफल तभी ,
           साहित्य जगत के उपवन में,जब कहलाये वह हास्यकवि 

रविवार, 5 फ़रवरी 2012

आजाद देश वीरान हुआ

       भारत   का   हर   प्राणी, सहमा सहमा सा  देख  रहा ,
       हम सब   भारतवासी   हैं, फिर कैसा  ये   भेद   रहा .
      कारखाने खुले नगर नगर में, फिर  क्यों बेरोजगारी आयी,
      नेता अफसर करें मौज,पर जनता ने    महंगाई   पायी .

                   मनोबल ऊँचा था उनमें,कह्ते जिन्हें स्वतन्त्रता सेनानी ,
                    कैसे   देश  आजाद  हुआ,इसकी कीमत   किसने जानी.
                     कोसें  हम उस   क्षण को,जब खंडित   यह   देश   हुआ ,
                      शत्रु   बना   पाकिस्तान ,सीमाओं  पर  क्लेश   हुआ.

    अपने  ही  भाई  अपनों  का  रक्त बहाते   नित्य   हैं
    बहनें  बनती    विधवाएं  ,कैसा  निर्मम    कृत्य   है.
    विकट हुई देश की हालत,समस्याओं का अम्बार लगा,
     इधर गिरती फूस की झोपड़ी,उधर महलों का बाजार लगा .

                          अब  अपने  ही श्रम का ,मोल नहीं हम पाते  हैं,
                           हमें  लूटते  चंद लुटेरे ,बोल  नहीं हम  पाते   हैं .
                           छिनी खुशियाँ,चली बंदूकें,चौराहा लहुलुहान हुआ ,
                            सत्ता के भ्रष्ट दलालों से,आजाद देश वीरान हुआ.

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

राह में यूँ काँटा बिछाया ना करो.

                    राह में यूँ काँटा बिछाया ना करो.
              दूर रहकर मुझे सताया ना करो

              हक़ है  मुझे  करीब  रहने  का,
              महफ़िल में ऐसे पराया ना करो .

              खता क्या है बताओ तो सही,
              बेक़सूर  हूँ फंसाया  ना  करो.

              जिंदगी के लम्हे कीमती हैं बहुत,
               
             दर्देगम   में  इसे जाया  ना  करो .

            खुशियों को दामन में समेत लो सारे,
            आंसुओं  में  इन्हें  बहाया  ना  करो.

मंगलवार, 31 जनवरी 2012

तो मैं क्या करूँ ,

   


                      मुखौटे लगाकर लोग चलने लगे,तो मैं  क्या करूँ ,
               ख्यालात भी उनके बदलने लगे, तो मैं क्या करूँ.

              इश्क की दुनिया रंज-ओ गम की तो न थी मगर,
              अरमां  दिलों  के  टूटने लगे, तो  मैं  क्या  करूँ .

              दौलत  ने  हर चीज  खरीद  डाली है  दुनिया की ,
              इंसानियत भी अब बिकने लगे, तो में क्या करूँ.

              पैमाना दर्देगम का खाली हुआ मगर आजुर्दगी न गयी ,
              छोड़कर  मैखाने  को  वे जाने लगे,तो मैं  क्या  करूँ .

                इरादतन तो 'अनुरागी ' ने उनको बुलाया ही न था ,
               खुद  पहलु  में  वे  आने  लगे  तो  मैं   क्या  करूँ .

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

अंग-अंग में आग लगी है

   


    मृदुभावों  की  सरिता में
    विकल मन होता प्रभावित-
    मधुमास की मादकता मे
    मेरा  अंतर्मन मर्माहित-
     देख भवरों के मधुपान से
     ह्रदय में अब प्यास जगी है 
               अंग-अंग में आग लगी है-


     तेरे अन्तर्मन की थाह मिले कैसे 
      सागर  की  गहराइयों  से 
     अनमोल  रतन  हैं  उर में तेरे 
      स्नेहलता  है   ऊँचाइयों  में 
      प्रियतम! तुम  कितने निष्ठुर हो \
      विरह  वेदना  खूब  जगी  है- 
                   अंग-अंग में आग लगी है-  


      प्रियतम जब से मैंने तुझको 
      निश्छल  मन  में संजोया है]
       मन मयूर नृत्य करे निसदिन 
      शापित  यौवन  अलसाया   है-
      सावन संध्या की निर्जन वेला में 
       चपल   चांदनी   बनी  सगी है -
                 अंग-अंग में आग लगी है-

नववर्ष तेरा अभिनन्दन-अभिनन्दन.



      
    नित नूतन सुख की किरणों से 
    मह्के   जग  ,सारा   जीवन.
    सुख-समृद्धि की पावन वेला में 
     छूटे  कष्टों  के   बंधन .
                          जीवन के क्षण-क्षण में, 
                            हो,उर में नेह स्पंदन .
                            नववर्ष  तेरा अभिनन्दन-अभिनन्दन.
     अशिक्षा   का  मिटे अँधेरा
      खुशियाँ छाये आंगन-आंगन
      नयनों से नित नेह बरसे,
       मिटे शोषितों के क्रन्दन.
                                हिंसा  की ज्वाला बुझे
                               जग में फैले अपनापन. 
                                नववर्ष  तेरा अभिनन्दन-अभिनन्दन.
        आशाओं    का   हो   सवेरा 
       शुभ संदेशों  का नित आगमन.
        पर्यावरण   की   रक्षा    को ,
         फैले  जग  में  वन  उपवन .
                              युग युग के सेतु  नववर्ष 
                              सदभावों से तुझे नमन .
                              नववर्ष  तेरा अभिनन्दन-अभिनन्दन.
       ओ मानव-क्रांति के अग्रदूतों
       तुम  कुछ  ऐसा  करो गर्जन .
      मातृभूमि    के    शत्रुओं  का ,
      हो     जिससे     मान-मर्दन .
                                स्मरण रहे सदा हमें, 
                               अपना गौरवमय  इतिहास पुरातन .
                               नववर्ष  तेरा अभिनन्दन-अभिनन्दन.



कुण्डलियाँ

                 प्रजातंत्र   के   युग  में ,आ  गयी   है मौज,
           भ्रष्टाचार दलाली में,लगी लुटेरों की फ़ौज. 
          लगी लुटेरों की फ़ौज,लोकतंत्र हुआ बदनाम,
          महंगाई   के  बोझ  से, बढ़े  राशन  के  दाम ,
          देख कवि 'अनुरागी',सत्ता  का अद्भुत मंत्र,
          नेता अफसर मौज में,बीमार हुआ  प्रजातंत्र,


          भारत के लोकतंत्र में ,भ्रष्टाचारी हैं मालामाल,
          घोटालों   के   इस   दौर  में, जनता  है  बेहाल.
          जनता   है  बेहाल,  ऐसा   क्यूँ   सोचा   भाई ,
          हमें सुला फुटपाथ पर, खुद चाट  रहे  मलाई .
         सोचे  कवि 'अनुरागी', कैसे  हैं ये  गोरख धंधे,
         पब्लिक चिल्लाये सड़कों पर,नेता हो  गए अंधे,  


        


       राजनीति   के घाट  पर,लगी  सरकार  को  ठंड,
        सुप्रीम कोर्ट  ने  है दिया , टूजी  घोटाले का  दंड .
        टूजी घोटाले   का  दंड ,  चिदंबरम  भी   थर्राये,
       कपिल, सोनिया, दिग्विजय ,अब  कैसे  गुर्राएँ.
       कहे  कवि  'अनुरागी, मत  पनपाओ   दरिद्रता,
      देशहित की बातें सोचो,लोकतंत्र में लाओ भद्रता .