मृदुभावों की सरिता में
विकल मन होता प्रभावित-
मधुमास की मादकता मे
मेरा अंतर्मन मर्माहित-
देख भवरों के मधुपान से
ह्रदय में अब प्यास जगी है
अंग-अंग में आग लगी है-
तेरे अन्तर्मन की थाह मिले कैसे
सागर की गहराइयों से
अनमोल रतन हैं उर में तेरे
स्नेहलता है ऊँचाइयों में
प्रियतम! तुम कितने निष्ठुर हो \
विरह वेदना खूब जगी है-
अंग-अंग में आग लगी है-
प्रियतम जब से मैंने तुझको
निश्छल मन में संजोया है]
मन मयूर नृत्य करे निसदिन
शापित यौवन अलसाया है-
सावन संध्या की निर्जन वेला में
चपल चांदनी बनी सगी है -
अंग-अंग में आग लगी है-
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