शनिवार, 10 नवंबर 2012

कुंडलियाँ

प्रजातंत्र के इस दौर में,आ गयी है मौज.
भ्रष्टाचार,दलाली में, लगी लुटेरों की फ़ौज,
लगी लुटेरों की फ़ौज,देश हो रहा बदनाम.
मंहगाई के बोझ से, जीना हुआ हराम.
देखत कवि ‘अनुरागी’,सत्ता का ये मंत्र.
नेता दलाल मौज में,बंधक बना प्रजातंत्र.

भारत के लोकतंत्र में,जनता हुई हलाल,
होते रोज घोटालों से,लुटता देश का माल.
लुटता देश का माल,अब क्या होगा भाई,
देश डूबे घोटालों में,नेता चाट रहे मलाई.
रोवत कवि ‘अनुरागी’,देख सत्ता के धंधे,
पब्लिक चिल्लाये सड़कों पे,नेता हो गए अंधे.

राजनीति के घाट पर,लगी लोकतंत्र को ठण्ड,
नित नए घोटालों से ,मिला जनता को दंड.
मिला जनता को दंड, डायन मंहगाई खा गयी,
सत्ता के दलालों को,घोटालों की दुनिया भा गयी.
दुखी कवि ‘अनुरागी’, अब कौन सुने आपबीती,
नैतिकता,सदाचार को, खा गयी पूरी राजनीति.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें