लाठी मेरी देखा कर ,भैंस रह गयी दंग,
शक्तिवान सावंत तुम,चल रही हूँ संग.
चल रही हूँ संग,लाठी की ताकत न्यारी.
सबल के बल पौरुष से ,निर्बल चली बेचारी.
कह कवि 'अनुरागी',जग की यही परिपाटी ,
होगी भैंस उसी की ,हाथ में जिसके लाठी .
मक्खन में गुण बहुत हैं ,सभी जानते आज.
सभी जगह पूजते फिरें, जो हैं मक्खनबाज .
जो हैं मक्खनबाज,उन्हीं का आज ज़माना ,
वही मजे में, जो मक्खन का दीवाना .
कहे कवि ' अनुरागी' आप भी मक्खन लीजे ,
सफल जीवन के लिये,मक्खन की मालिश कीजे.
कवि सम्मलेन के मंच पर ,आओ खेलें होली .
छंद करें स्वच्छंद , फाड़ कविता की चोली.
फाड़ कविता की चोली, घिसें शब्दों के पेड़ ,
कविता बांचे हास्य की , मार श्रोता की रेड़.
कहे कवि 'अनुरागी', मिले जीवन का मृदुफल तभी ,
साहित्य जगत के उपवन में,जब कहलाये वह हास्यकवि
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