कविराज रामकृष्ण बडोला "वैद्य" |
उत्तराखंड के जनपद पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर
विकास खंड में ग्रामसभा कांडी से संलग्न ग्राम
अमगांव के स्व० कविराज रामकृष्ण बडोला "वैद्य" जिनकी अब केवल स्मृतियाँ
ही शेष हैं हिंदी और गढ़वाली में बडोला जी की कई रचनाएं पुस्तकें प्रकाशित
हैं.इनमें 'धर्मघात'
और 'मंथरा
के राम' काफी चर्चित रही. धर्मघात में जहाँ रूढ़ीवादी समाज पर चोट की
गयी वहीँ मंथरा के राम पुस्तक में मंथरा के प्रचलित नकारात्मक चरित्र को सकारात्मक
चरित्र में दर्शाया गया. जो एक नया प्रयोग साबित हुआ. कांडी में लम्बे समय तक स्व०
बडोला जी ने चिकित्सा क्षेत्र में कार्य किया बाद में स्वास्थ्य ख़राब होने पर सन १९७८
में निजि "जनकल्याण चिकित्सालय" कार्य अपने चिकित्सक पुत्र डॉ
मधुसुदन बडोला को सौप दिया और खुद लेखन कार्य में जुट गए थे.
साहित्यिक
उपलब्द्धियां --
बकौल कवि बडोला जी के दिनांक
१-१०-१९९२के पत्रांश के अनुसार-
"साहित्य में मेरी पहले से ही रूचि
रही मगर चिकित्साकाल में पूरी तरह उक्त विषय पर पूरा
ध्यान नहीं दे सका. अब निश्चिन्त होकर लिखना शुरू किया इससे पहले हिंदी साहित्य
में मेरी दो पुस्तकें "मंथरा के राम" और "कालचक्र" प्रकाशित
हो चुकी हैं.जो विज्ञ समाज द्वारा सम्मान प्राप्त
होकर मेरी लेखनी का गौरव बढ़ा चुकी हैं.एक पुस्तक तीसरी "धरमघात' अपनी मातृभाषा
में भी प्रकाशित कर चुका हूँ जो कि गढ़वाली
इसके अतिरिक्त अनेक पत्र-पत्रिकाओं
में उनकी रचनाएं,आलेख प्रकाशित होते रहे साथ ही
आकाशवाणी नजीबाबाद से भी उन्होंने अपनी कविताओं का काव्यपाठ किया और काव्य गोष्ठियों
में भी जाते रहे.. महाकवि कालिदास पर भी उनका अध्ययन गहरा था कालिदास पर भी उनके
शोध आलेख "कालिदास एवं कविल्ठा" की चर्चा खूब रही. बडोला जी की अनेक रचनाएं
अभी भी अप्रकाशित हैं इनमें कुछ खंडित भी हुई क्योंकि उनकी देख रेख सही ढंग से
नहीं हो पायी.
स्व० बडोला जी कि साहित्यिक
अभिरुचि बचपन से ही थी लेकिन लेखन कर्म की तरफ उनका झुकाव उतना नहीं हो पाया जितना
वे चाहते थे.यह बात उन्हें हमेशा सालता रहा कि लेखन कार्य उन्होंने बहुत विलम्ब से
आरम्भ किया. अगर समय से उनका साहित्य सृजन आरम्भ हो गया होता तो आज
एक विशाल साहित्य भण्डार उनके नाम होता.
हस्तलिपि में बडोला जी की रचनाएं |