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मंगलवार, 12 नवंबर 2019

स्व० कविराज रामकृष्ण बडोला "वैद्य" व्यक्तित्व एवं कृतित्व


कविराज रामकृष्ण बडोला "वैद्य"

उत्तराखंड के जनपद पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर विकास खंड में ग्रामसभा कांडी से संलग्न ग्राम अमगांव के स्व० कविराज रामकृष्ण बडोला "वैद्य" जिनकी अब केवल स्मृतियाँ ही शेष हैं हिंदी और गढ़वाली में बडोला जी की कई रचनाएं पुस्तकें प्रकाशित हैं.इनमें 'धर्मघात' और 'मंथरा के राम' काफी चर्चित रही. धर्मघात में जहाँ रूढ़ीवादी समाज पर चोट की गयी वहीँ मंथरा के राम पुस्तक में मंथरा के प्रचलित नकारात्मक चरित्र को सकारात्मक चरित्र में दर्शाया गया. जो एक नया प्रयोग साबित हुआ. कांडी में लम्बे समय तक स्व० बडोला जी ने चिकित्सा क्षेत्र में कार्य किया बाद में स्वास्थ्य ख़राब होने पर सन १९७८ में निजि "जनकल्याण चिकित्सालय" कार्य अपने चिकित्सक पुत्र डॉ मधुसुदन बडोला को सौप दिया और खुद लेखन कार्य में जुट गए थे.

साहित्यिक उपलब्द्धियां --
बकौल कवि बडोला जी के दिनांक १-१०-१९९२के पत्रांश के अनुसार-
"साहित्य में मेरी पहले से ही रूचि रही मगर चिकित्साकाल में पूरी तरह उक्त विषय पर पूरा ध्यान नहीं दे सका. अब निश्चिन्त होकर लिखना शुरू किया इससे पहले हिंदी साहित्य में मेरी दो पुस्तकें "मंथरा के राम" और "कालचक्र" प्रकाशित हो चुकी हैं.जो विज्ञ समाज द्वारा सम्मान प्राप्त होकर मेरी लेखनी का गौरव बढ़ा चुकी हैं.एक पुस्तक तीसरी "धरमघात' अपनी मातृभाषा में भी प्रकाशित कर चुका हूँ जो कि गढ़वाली
कविताओं का संग्रह है."


इसके अतिरिक्त अनेक पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं,आलेख प्रकाशित होते रहे साथ ही आकाशवाणी नजीबाबाद से भी उन्होंने अपनी कविताओं का काव्यपाठ किया और काव्य गोष्ठियों में भी जाते रहे.. महाकवि कालिदास पर भी उनका अध्ययन गहरा था कालिदास पर भी उनके शोध आलेख "कालिदास एवं कविल्ठा" की चर्चा खूब रही. बडोला जी की अनेक रचनाएं अभी भी अप्रकाशित हैं इनमें कुछ खंडित भी हुई क्योंकि उनकी देख रेख सही ढंग से नहीं हो पायी.
स्व० बडोला जी कि साहित्यिक अभिरुचि बचपन से ही थी लेकिन लेखन कर्म की तरफ उनका झुकाव उतना नहीं हो पाया जितना वे चाहते थे.यह बात उन्हें हमेशा सालता रहा कि लेखन कार्य उन्होंने बहुत विलम्ब से आरम्भ किया. अगर समय से उनका साहित्य सृजन आरम्भ हो गया होता तो आज एक विशाल साहित्य भण्डार उनके नाम होता.
हस्तलिपि में बडोला जी की रचनाएं 


मंगलवार, 16 अगस्त 2016

पाक प्रायोजित आतंकवाद बनेगा २०१९ में मोदी जी की भारी जीत का आधार

भारत की राष्ट्रिय,अंतर्राष्ट्रीय राजनीति अब नए युग में प्रवेश कर चुकी है. इस बदली राजनीति में जो राजनेता,राजनीतिक दल खुद को समय के साथ बदलने के लिए तैयार नहीं हैं उनकी बौखलाहट न केवल मोदी विरोध के रूप में सामने आ रही है बल्कि इस विरोध को वे राष्ट्र विरोध की सीमा तक ले जाने में संकोच करने से भी नहीं हिचक रहे हैं.
इस नयी राजनितिक परिवेश से जो सूचनाएं छनकर सामने आ रही हैं उसके अनुसार मोदी जी ने भी मान लिया है कि
2019 के चुनाव को प्रचलित  परंपरागत हथकंडों से जीतने की कोई गारंटी नहीं है। वे केंद्र में राष्ट्रवादी सरकार को कम से कम 2024 तक बिना अवरोध के जारी रखना चाहते हैं। 2014 की जीत से केवल सत्ता में राजनीतिक परिवर्तन ही हुआ है। अभी प्रशासन,न्यायपालिका, शिक्षा,मीडिया से भारतीय राष्ट्रवाद का स्तर न्यूनतम पर पहुँच चूका है. इसे हम इस तरह भी कह सकते हैं कि देश में स्वतंत्रता के बाद आज तक राष्ट्रवाद को कभी पनपने,उभरने ही नहीं दिया.
मोदी जी विकास की राजनीति कर रहे हैं लेकिन यह चुनाव जीतने की गारंटी नहीं देता है।  लोकसभा चुनाव में 'फीलगुड' देने वाली अटल सरकार की लोकसभा चुनाव में हार से भाजपा इस अनुभव को पहले ही महसूस कर चुकी है. सरकार  कितना भी विकास कर ले विरोधी इसे कभी आरक्षण,कभी जातिवाद,कभी दलित उत्पीड़न तो कभी असहिष्णुता के मुद्दे को लेकर मोदी सरकार की योजनाओं,उपलब्द्धियों को आम नागरिकों तक पहुँचने,पहुंचाने की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न कने में लगी हैं और कभी कभी वोटरों की हद से ज्यादा जागरूकता भी अच्छी सरकार के भविष्य के लिए हानिकारक सिद्ध हो रही है।
मोदी सरकार विरोधियों के साजिश को नाकाम करने की दिशा में काम कर रही है. मिडिया में साम्यवादी मानसिकता के लोगों का बहुमत होने से प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मिडिया मोदी सरकार के राष्ट्रवादी और हिन्दुत्ववादी चरित्र के कारण मोदी सरकार के हर जनहितकारी कार्यक्रम,योजनाओं की आलोचना करती रहती है. जो मोदी सरकार के अच्छे कामों को जनता तक नकारात्मक रूप में प्रस्तुत करती है. इसमें विपक्ष का साथ उनको मिला रहता है. देश के विकास में बाधा उत्पन्न करने वाली छद्म सेकुलेरिम से ग्रसित बुद्धिजीवियों के कुकृत्य से मोदी सरकार को ऊर्जा मिल रही है। देश की जनता समझ रही है कि कुछ लोग मोदी विरोध में देश की अस्मिता को ही खतरे में डाल रहे हैं. इससे मोदी जी 2019 का चुनाव पुरे बहुमत के साथ जीतेंगे। ठीक वैसे ही जैसे १९७१ में भारत पाक युद्ध के बाद इंदिरा गाँधी को जन समर्थन मिला था.
वर्तमान में जो चुनावी टोटके पक्ष विपक्ष के चल रहे हैं। वह राज्यों के चुनाव तक ही सीमित रहेंगे. २०१९ में लोकसभा चुनाव में जीत के लिए जो आधार अनायास पाकिस्तान मोदी सरकार को अनजाने में उपलब्ध करा रही है मोदी सरकार को उसका सदुपयोग कराने के लिए पाकिस्तान भी उतावला दिख रहा है. पाकिस्तान की कश्मीर घाटी में अलगाववादियों को खुला समर्थन देना दोनों देशों के बीच लगातार बढ़ते तनाव में चिंगारी ही डालने का काम कर रहा है. मोदी सरकार भी समझ रही है कि पाकिस्तान भारत के नरम रुख को भारत की कमजोरी मानने की भूल कर रहा है. वह ऐसे मानने वाला नहीं है दशकों तक बातचीत का भी आज तक कोई परिणाम नहीं निकला है. निकट भविष्य में भी कोई संभावना नहीं है. इसलिए भारत की विदेश नीति अपने रुख में परिवर्तन कर उसे पकिस्तान के प्रति आक्रामक रूप देने को मजबूर हो गयी है. इसकी शुरुवात मोदी जी ने इस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लालकिले की प्राचीर से कश्मीर घाटी में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का जिक्र करते पाक अधिकृत कश्मीर,गिलगिट,बलूचिस्तान का बड़ी कूटनीतिक भाषा में अपने ऐतिहासिक भाषण में उल्लेख कर ही दिया. जो पूरे प्रधानमंत्री के भाषण में मीडिया के लिए ब्रेकिंग न्यूज़ बन गयी.
पाकिस्तान के बडबोलेपन से पैदा होती जा रही विपरीत परिस्थितियां कश्मीर ही नहीं पुरे देश में शांति को भंग कर रही हैं. पहले जितनी बार भारत ने पाकिस्तान के साथ मित्रता करने का प्रयास किया पाकिस्तान ने हर बार धोखा देकर उस अवसर को गँवा दिया, आखिर कोई कब तक संयम का परिचय देता रहेगा. हाँ अगर देश में वही कांग्रेसनीत सेकुलर सरकार होती तो पाकिस्तान के साथ बार बार धोखा खाने के उसी नीति पर चलती जो पिछले ७० सालों से अभी तक चल रही है. चूँकि देश में अब राष्ट्रवादी सरकार है पाकिस्तान भी अपना स्वभाव सुधारने के बजाय भारत में आतंकवाद को और तेजी के साथ बढ़ावा देने में लग गया है. यही भारत के विदेश नीति में परिवर्तन का कारण बन रहा है. देश की विदेश नीति का यह नया रूप मोदी सरकार के लिए भी ब्रह्मास्त्र बनता जा रहा है जो आतंकवाद के स्थायी समाधान के दिशा तय करने में सहायक सिद्ध हो सकता है आतंकवाद के समूल नाश के लिए भारत जो भी कदम उठाएगा वह निश्चित ही आगे जाकर भारत पाक संघर्ष में बदल जाएगा. कश्मीर घाटी इसी आतंकवादी समस्या से जुड़ा है जम्मू कश्मीर राज्य की विवादित धारा 370  की समाप्ति जो कश्मीर को पूरी तरह भारत का अंग बना देगी.
ये भी सच है कि इस्लामी आतंकवाद पर करार प्रहार न केवल देश में शांति लायेगा बल्कि बहुप्रतीक्षित समान नागरिक संहिता,अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मार्ग भी प्रशस्त कर देगी.
पाकिस्तान जिस तरह कश्मीर में अब खुलकर आतंकवाद फैला रहा है वह भारत पाक युद्ध से आरम्भ होकर पाकिस्तान से बलूचिस्तान/पख्तूनिस्तान और सिंध प्रांत का स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में आने से ही समाप्त होगा। पाकिस्तान हालात को लगातार विकट बनाता जा रहा है। सेना का आधुनिकीकरण युद्ध स्तर पर किया जा रहा है। प्रधानमंत्री,गृहमंत्री, रक्षामंत्री और प्रधानमंत्री के सलाहकार अजित डोभाल जी ने  संकेतों से भविष्य के इस अनिवार्य होते जा रहे टकराव का आभास भी कई बार करा दिया है. अब तो गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी पाकिस्तान के बारे में अपेक्षा से ज्यादा कठोर शब्द प्रयोग में ला रहे हैं. जो पहले नहीं सुने गए थे. अभी हाल ही में प्रधानमंत्री जी ने विपक्ष के साथ कश्मीर मामले में पाकिस्तानी साजिश को लेकर बैठक की थी जिसमें विपक्ष ने भी मोदी जी के पाकिस्तान के साथ अपनाए गए कड़े रुख का समर्थन कर दिया और कश्मीर आतंकवाद को जड़ से समाप्त करने वाली कार्यवाही को भी हल्की फुलकी शंकाओं के साथ सही बता दिया.
मोदी जी सुनियोजित तरीके से अपनी विदेश नीति को धार देकर पाकिस्तान को विश्व बिरादरी से अलग थलग कर दिया है फिलहाल सिर्फ चीन ही पाकिस्तान के साथ है चूँकि चीन की सीमा भारत से भी लगी है और पहले से ही भारत से दुश्मनी निकालता रहा है सो भारत को आतंकवाद के विरुद्ध अंतिम लड़ाई के लिए थोड़ा और समय की जरुरत है. ये निश्चित है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में चीन पाकिस्तान की प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से मदद ही करेगा। हो सकता है पाकिस्तान के साथ युद्ध शुरू होते ही चीन मौके का फायदा उठाते हुए तिब्बत,नागालैण्ड सीमा पर अपनी सेना को भारत के खिलाफ सक्रिय कर दे.
भारत का सैन्य आधुनिकीकरण दशकों से बोफोर्स घोटालों के कारण रुका हुआ है. जिससे हमारी सेना चीन के मुकाबले बहुत पीछे है। इसे देखते हुए मोदी सरकार  इस कमी को जल्द से जल्द दूर करने में लगे हैं.
पाक प्रायोजित आतंकवाद को समाप्त करने के लिए होने वाले संभावित युद्ध में जब पाकिस्तान पस्त हो जायेगा तो कश्मीर,भारत के अन्य हिस्सों में भी पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने वाले भी पाक के इस हार के साथ ही स्वतः  ठंडे पड़ जायेंगे फिर उनकी हिम्मत नहीं होगी कि वे देश में राम मंदिर बनाने और कश्मीर से धारा 370 हटाने का विरोध कर सकें.
असल में यह कहानी तब से शुरू हो रही है जब जम्मू कश्मीर से भारत और अमेरिकी गुप्तचर सूचनाओं से पक्की खबर निकली है कि कश्मीर के मदरसे,मस्जिदें पाक प्रायोजित आतंकवादियों के हथियारों से भरे हुए हैं और पाक आतंकवादी कश्मीरी अलगाववादियों के साथ मिलकर गृहयुद्ध की पूरी तैयारी में हैं। इस सुचना की पुष्टि होते ही मोदी सरकार ने भी युद्ध की तैयारी शुरू कर दी है पहले वह  मदरसों,मस्जिदों की जांच व तलाशी अभियान शुरू करेगी। यह तय है कि पाक परस्त मुल्ले,सेकुलर जमात और मिडिया इसका विरोध करेगी. विरोध को दरकिनार कर जांच अभियान जारी रहेगा. जैसे जैसे हथियार जब्त होते जायेंगे या विरोध में पाकिस्तानी हथियारों का प्रयोग होगा तो सेना की कार्यवाही भी तेज होगी.  
बात साफ़ है कश्मीर में हथियार बंद अलगाववादियों के खिलाफ सैनिक कार्यवाही होते ही पाकिस्तान चुप नहीं बैठेगा. पाक सेना और हाफ़िज की इस्लामी आतंकी सेना दोनों खुलकर मैदान में आ सकते हैं। जो संघर्ष को खतरनाक मोड़ पर ले जाने में कोई कोर कसार नहीं छोड़ेगा. निश्चित है बड़े नुकसान के साथ पाकिस्तान की हार होगी। पाकिस्तान खंडित होगा। पाकिस्तान से निकलकर एक नहीं दो देश अस्तित्व में आ जायेंगे। भारत को उसका पाक अधिकृत कश्मीर भी मिल जाएगा.
भारत के पाकिस्तान परस्त लोगों के सामने तब ये समस्या ये खड़ी होगी कि वे पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाएं या पख्तूनिस्तान जिंदाबाद, के नारे लगाएं।

मंगलवार, 22 मार्च 2016

होली की कुंडलियाँ

 राजनीति चौपड़ बिछी ,मन मलीनों के बीच,
  सत्ता  के  हुडदंग   में,  फेंके  स्वारथ  कीच,
  फेंके  स्वारथ  कीच, कर  जीवन  सुखदाय,
  सौ  सौ  जुटे  खायके ,इज्जत  लई  बचाय,
  कहे  कवि 'अनुरागी,'दुनिया  उसने जीती ,
  हर काले धंधे  के  साथ, करता जो राजनीति .

                             
कवि सम्मलेन के मंच पर,आओ खेलें होली,
छंद करे स्वच्छंद, फाड़ कविता की चोली.
फाड़ कविता की चोली, काटें शब्दों के पेड़,
कविता बांचें हास्य की,मार श्रोता की रेड़.
मांगत कवि ‘अनुरागी’,दो ‘हास्यरत्न’ पुरस्कार,
एक अकेला हास्य कवि, बाकी सब मक्कार.
                           

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

देहरादून बुद्ध मंदिर



जीवन की आपाधापी में हम अपने संकार,गंगा,जमुनी संस्कृति भाईचारे एवं भारतीयता के मूल गुणों को लगता है भूलते जा रहे हैं.समझ में नहीं आता की आने वाले भारत को क्लैसे नागरिक मिलेंगे?हमारा निवेदन ही नहीं आग्रह भी है अपनी आने वाली पीढ़ी को अपने मूल सस्कारों से अवश्य परिचित कराएँ .पश्चिमी सभ्यता में हम अपने गुलाम मानसिकता से इतने ना डूब जाएँ की हम अपनी जड़ों को ही विस्मृत कर बैठें ?आने वाला भारत वैसा ही होगा जैसा बीज आजकल बोया जा रहा है.......सोचिये ज़रा ?

रविवार, 14 सितंबर 2014

हिंदी दिवस की यह कैसी औपचारिकता


समझ में नहीं आता कि हिंदी दिवस हिंदी भाषी राज्यों में मनाने की जरुरत क्यों पड़ गयी है ? इसलिए कि हिंदी अब हिंदी भाषी क्षेत्रों में इतनी बेगानी हो गयी है उसे अपनी याद दिलाने के लिए ऐसा दिन चुनना पड़ रहा है जैसे हम लोग साल भर में एक दिन अपना जन्मदिन मनाते हैं . क्या कहीं दुनिया में इंग्लिश डे,रूसी दिवस,चीनी दिवस भी मनाया जाता है? अगर एक दिन हिंदी के लिए है तो बाकि दिन किसके लिए? ये भी तो साफ़ होना चाहिए.
 हिंदी भाषी क्षेत्रों में जब ये हाल हिंदी का हो रहा है तो गैर हिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी की स्थिति का आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं. पिछले वर्ष  प्रधानमंत्री मोदी ने पीएम कार्यालय से पत्र व्यवहार हिंदी भाषा में ही करने के लिए सभी राज्यों को पत्र लिखा था. आजादी के ६५ साल बाद हिंदी राष्ट्रभाषा होने के बावजूद भी गैर हिंदी राज्यों ने पीएम कार्यालय के इस पत्र पर हंगामा खडा कर दिया था. सभी सेकुलर मानसिकता वाली जमात औए सेकुलर मिडिया इसके विरोध में खड़ी हो गयी. आप समझ सकते हैं कि हिन्दुस्तान में हिंदी की स्थिति अभी सम्मानजनक नहीं है. हिंदी दिवस मनाना केवल एक औपचारिक कार्यक्रम बन कर रह गया है. हिंदी को हम आप ही मिलकर आगे बढ़ा सकते हैं अपने जीवन में हिंदी को पूर्णतया आत्मसात करके.


रविवार, 4 मई 2014

दागियों को संसद से हटाते क्यों नहीं

सुनील अनुरागी 


दागियों को संसद से हटाते क्यों नहीं 
इरादा क्या है हमें बताते क्यों नहीं ?

कब तक लुटेरे बनकर लूटते रहोगे 
बेशर्मी की हद है लजाते क्यों नहीं ?

मुखौटे पीएम से देश कब तक चलेगा
असली शासक कौन है बताते क्यों नहीं ?

घोटालों का सरदार कहाँ छुपा है 
सामने जनता के उसे लाते क्यों नहीं ?

अब नये मसीहा ने दुनिया को हिला दिया
सर आँखों पर उसे बिठाते क्यों नहीं ?

शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

कथाकार रामप्रसाद विद्यार्थी ‘रावी’

कथाकार रामप्रसाद विद्यार्थी ‘रावी’-बहुमुखी,बहुआयामी प्रतिभा 
के धनी एक महान साहित्यकार 
रामप्रसाद विद्यार्थी 'रावी'


हिंदी साहित्य जगत को अपनी मौलिक कृतियों से समृद्ध करने वाले  प्रयोगधर्मी जीवनशिल्पी साहित्यकार एवं चिन्तक रामप्रसाद विद्यार्थी अर्थात ‘रावी’ के निधन को इस सितम्बर माह को उन्नीस वर्ष पुरे होने जा रहे हैं. ठीक उन्नीस साल पहले 9 सितम्बर 1994 को रावी ने आगरा (सिकंदरा) के निकट अपनी कर्मस्थली (नयानगर,कैलास आश्रम) में भौतिक देह का परित्याग कर सूक्ष्मलोक में प्रवेश कर लिया था.

मानवीय दर्शन एवं मानवीय संबंधों की जन्मजन्मान्तर व्यापी अखंडता के पक्षधर रावी प्रयोगधर्मी साहित्यकार होने के साथ-साथ बहुमुखी प्रतिभा के भी धनी थे, मानवीय  जीवन और मानवीय सौन्दर्य के घोर उपासक होने के कारण रावी मानव में अन्तर्निहित सौन्दर्य के कुशल पारखी एवं उद्घाटक भी थे. रावी का सम्पूर्ण जीवन और साहित्य मानवीय चेतना के उन्नयन एवं विकास को समर्पित था.
रावी केवल साहित्यकार ही नहीं थे अपितु साहित्यकार से कहीं अधिक ऊँचे और भी बहुत कुछ उनमें निहित था. अगर हम केवल उन्हें साहित्यकार,चिन्तक मानकर चलें तो यह रावी के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का दशमांश भी नहीं होगा. रावी एक महान जीवनशिल्पी भी थे. समाज का नवीन सर्जन करने वाले,सामाजिक नवनिर्माण हेतु नए मानव की रचना को समर्पित इस महान जीवनशिल्पी का जन्म 16 दिसंबर 1911 को बुंदलखंड के पहाड़ी कसबे कुलपहाड़ जिला हमीरपुर में हुआ था. इनके पिता श्री शीतल प्रसाद वहां तहसील में अहलकार थे. अपने तीन भाई और चार बहनों में ये सबसे छोटे थे. चौबीस वर्ष की आयु में रावी अगरा आ गए. इस बीच सन् 1947 में रावी को सिकंदर के निकट कैलास आश्रम ने आकृष्ट किया तो वहीं रहने लगे. रावी ने सामाजिक रुढियों को तोड़कर अंतर्जातीय विवाह भी किया,परन्तु उनका दाम्पत्य जीवन अधिक साथ नहीं चल पाया,मात्र 12 वर्ष साथ रहकर पत्नी लीलावती ने 29 मई 1959 को देह त्याग कर रावी को साहित्य साधना हेतु स्वतंत्र कर दिया.
रावी की स्कूली शिक्षा विशेष नहीं रही, उन्होंने हाईस्कूल तक ही शिक्षा ग्रहण की परन्तु अपने अध्ययन और स्वाध्याय को जीवन पर्यन्त जारी रखा.
मौलिक साहित्य के क्षेत्र में रावी का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है. रावी के विभिन्न कार्यों एवं प्रयोगों में साहित्य ही ऐसी निधि है जो रावी को लम्बे समय तक चिर स्थाई रख सकेगी. लगभग सभी विधाओं में रावी ने अपनी लेखनी का प्रयोग किया. उनकी सैकड़ों रचनाएँ छोटे बड़े विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में बिखरी हुई हैं. अपने जीवनकाल में रावी ने लगभग तीस से अधिक पुस्तकें हिंदी साहित्य जगत को समर्पित की है.
अपनी लेखन यात्रा का आरम्भ रावी ने इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली पत्रिका द्वारा किया. उनकी प्रथम कहानी ‘अपमानित का मान’ सन् 1929 में इसी पत्रिका में प्रकाशित हुई, इस दौरान कई छुट-पुट रचनाएँ ही निकलती रहीं लेकिन साहित्य सर्जन की वास्तविक यात्रा सन् 1937 में गद्यकाव्य संग्रह ‘पूजा’ के प्रकाशन के साथ आरम्भ हुआ. ‘पूजा’ के अतिरिक्त गद्यकाव्य की दूसरी पुस्तक ‘शुभ्रा’ सन् 1941 में प्रकाशित हुई.
रावी का जीवन लेखन के साथ साथ प्रयोगों का भी रहा है. सन् 1943 से 46 तक रावी ने पुस्तकालय व्यवसाय को अपनाया. इस दौरान रावी ने आठ आने से एक पुस्तकालय की स्थापना आगरा नगर में की. जिसका उद्देश्य घर–घर पाठकों तक पुस्तकें पहुँचाना था. तीन वर्ष तक पुस्तकालय संचालन कर रावी ने नगर के ही एक साहित्य प्रेमी सेठ स्व० रतनलाल जैन को दो हजार में पुस्तकालय बेचकर स्वयं घर-घर जाकर पुस्तकें बेचने का कार्य आरम्भ कर दिया था. सर पर पुस्तकों से भरी टोकरी लिए रावी शहर के गली मुहल्लों में घुमने लगे. इस कार्य से रावी को एक और जहाँ नए नए अनुभव प्राप्त हुए वहीं दूसरी और जनसंपर्क से उनका विशाल परिचय श्रोत भी बन गया. इन अनुभवों को रावी ने कलकत्ते से प्रकाशित ‘विशाल भारत’ मासिक पत्रिका में कई अंकों में धारावाहिक रूप से प्रकाशित किया. इस डायरी के प्रकाशन से रावी की ख्याति बहुत अधिक बढ़ गई थी. बाद में यह ‘बुकसेलर की डायरी’ के नाम से पुस्तकाकार रूप में ‘इंडियन प्रेस’.प्रयाग ने सन् 1947 में प्रकाशित की.
इस बीच रावी ने घर घर जाकर कहानियां सुनाने का भी कार्यक्रम भी बनाया. सन् 1954 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार की संचालिका स्व० रमा जैन ने 150 रुपये मासिक पर एक वर्ष तक रावी को अपनी पुस्तक ‘हृदयों की हाट’  वार्ता को भारत भर के स्कूल कॉलेजों में सुनाने के लिए दिए थे. तब रावी देश के विभिन्न स्थानों पर गए थे. इस दौरान ‘हृदयों की हाट’ के अलावा रावी की अनेक पुस्तकें प्रकाशित चुकी थीं. प्रथम कहानी संग्रह ‘किसके लिए’ तथा दूसरा कहानी संग्रह ‘पत्नियों का द्वीप’ सन् 1948 में प्रकाशित हुई.इसी वर्ष समाज चिंतन की पुस्तक ‘नया समाज:नया मानव’ भी प्रकाशित हो गयी. अगले ही वर्ष उनका तीसरा कहानी संग्रह ‘उपजाऊ पत्थर’ भी छपकर पाठकों के पास पहुँच गयी जो बाद में मद्रास विश्वविद्यालय के इंटरमीडिएट पाठ्यक्रम में भी सामिल हो गया. इसके अतिरिक्त ‘प्रबुद्ध सिद्धार्थ’ नाटक सन् 1951 में प्रकाशित हो गयी. यह नाटक भी उत्तर प्रदेश इंटरमीडिएट कक्षाओं के पाठ्यक्रम में पाठ्य पुस्तक के तौर पर कई वर्षों तक निर्धारित रहा.
रावी साहित्य 
‘नए नगर की कहानी’ रावी का विशिष्ट उच्चकोटि का उपन्यास है. अब तक इसके कई संस्करण निकल चुके हैं. इस नितांत मौलिक उपन्यास में रावी ने नए नगर और नए समाज की कल्पना को शब्दों द्वारा साकार किया है. आज के साधारण,अर्धविकसित और दुर्बल चरित्र वाले समाज में से किस प्रकार एक नए,सुखी समाज का जन्म हो सकता है यही इस उपन्यास में है. आगे चलकर यही उपन्यास यथार्थ रूप में ‘नयानगर’ एवं ‘मैत्रीक्लब’ का आधार बना.
हिंदी साहित्य जगत ने रावी को अपेक्षित सम्मान नहीं दिया. इसका कारण यह भी है कि हिंदी जगत अभी तक रावी के साहित्य का उचित मूल्यांकन  करने में असमर्थ रहा है. इसके वावजूद भी रावी की कई पुस्तकें पुरस्कृत एवं प्रशंसित भी हुई हैं. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा रावी की दो पुस्तकों को पुरस्कृत भी किया है. सन् 1954 में कहानी संग्रह ‘कहानीकार’ एवं सन् 1956 में निबंध संग्रह "क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ” पुरस्कृत हुईं. इनके अतिरिक्त समाज चिंतन की पुस्तक ‘वीरभद्र की गोष्ठी’ भी पुरस्कृत रचना है.
लघुकथाकार के रूप में रावी हिंदी के उन गिने-चुने लघुकथाकारों में गिने जाते हैं जिन्होंने साहित्य की एक नयी विधा ‘लघुकथा’ को अपनी सैकड़ों लघुकथाओं से सम्रद्ध कर उस हिंदी साहित्य में उचित स्थान प्रदान किया है. भारतीय ज्ञानपीठ दिल्ली ने रावी के दो लघुकथा संग्रह प्रकाशित किये. ‘मेरे कथागुरु का कहना है’ शीर्षक लघुकथा संग्रह में लगभग डेढ़ सौ लघुकथाएं दो खण्डों में प्रकाशित हैं. इनके अतिरिक्त ‘रावी की परवर्ती लघुकथाएं’ संग्रह में भी रावी की उत्कृष्ट लघुकथाएं संग्रहित हैं.
रावी साहित्य 
कहानियां एवं लघुकथाएं लिखने की रावी की अपनी विशिष्ट शैली है. पौराणिक आख्यान शैली में लिखी ये कहानियां ऊपर से सरल व रोचक लगती हैं लेकिन इनमें अन्तर्निहित सन्देश अत्यंत गूढ़ है. प्रत्येक कहानी और लघुकथा कुछ ना कुछ सन्देश अथवा आमंत्रण देती हुई प्रतीत होती हैं. जीवन की सार्थकता और रोचकता के जो दृश्य एवं दृष्टिकोण उनकी कहानियों में है वह विश्व के किसी भी साहित्य में दुर्लभ हैं.
रावी के कुछ कार्यकलापों रहस्यमय भी समझा गया था. कनु एवं कनिष्ठतनु के नाम से वे सूक्ष्म जगत के कुछ ‘सीनियर्स’ से जुड़े हुए थे. रावी के अन्तरंग मंडली के इन ‘सीनियर्स’ में डैडी,वीरभद्र,नीतराग,त्रिलोचन,हिमदा,स्नेहशिखा,वारिद आदि प्रमुख हैं. ये ही आगे रावी की  ‘वीरभद्र की गोष्ठी’, ‘नए नगर की कहानी’, ‘पचास पर्चे इराक्लब के’ आदि पुस्तकों में प्रमुख पात्र बनाकर निकले हैं. हालाँकि इन ‘सीनियर्स’ का कोई दैहिक अस्तित्व नहीं है. लेकिन रावी की पुस्तकों एवं ‘नए विज्ञापन’ पत्र में इनकी अनेक रचनाएँ देखने को मिलती रही हैं. स्नेहशिखा की अनेक अंग्रेजी में उत्कृष्ट कवितायें रावी के लेखनी के माध्यम से ही निकली हैं.
नीतराग वातायन कृत ‘उच्चतर कामविज्ञान के सूत्र’ लघु पुस्तक को रावी ने अपने जीवन की महत्वपूर्ण पुस्तक माना है. इस पुस्तक में मात्र नौ सूत्र दिए गए है. परन्तु इन सूत्रों का महत्त्व व्यापक है. रावी का कहना है कि ये सूत्र उन्हें मनस्तरीय तरंगों (टेलीपैथी) द्वारा प्राप्त हुए हैं. इन सूत्रों में नीतराग ने नारी पुरुष युग्म के उर्ध्वांग मिलन (आलिंगन एवं चुम्बन) के महत्त्व को प्रसारित किया है रावी का मानना है कि यौनरति से ऊपर उठकर आलिंगन एवं चुम्बन के द्वारा भी नारी पुरुष पर्याप्त जीवन पोषक तत्व व उत्तरोत्तर तृप्तिकारक सुख को प्राप्त कर सकते हैं. इस पुस्तक में रावी केवल भाष्यकार एवं प्रस्तोता के रूप में सामने आये हैं.
 साहित्यकार विष्णु प्रभाकर द्वारा रावी का अभिनन्दन 
अपने चिंतन एवं लेखन को यथार्थ रूप में परिणित करने के लिए प्रयोगधर्मी रावी ने कई प्रयोग किये.जिनमें मैत्रिक्लब,नयानगर,अग्रसर नैतिक काम विज्ञान संस्थान,जीवन प्रवेश विद्यालय आदि प्रमुख हैं.

मैत्रीक्लब की विधिवत स्थापना रावी ने कुछ मित्रों को लेकर 12 जुलाय 1957 में की. कैलास आश्रम में गठित इस मैत्रीक्लब संस्था से देश के अनेक प्रख्यात बुद्धिजीवी जुड़े. जिनमें अनेक प्रसिद्द साहित्यकार,पत्रकार,सम्पादक,प्रशासनिक अधिकारी,राजनीतिज्ञ हैं. पूर्व में अमर उजाला दैनिक के संस्थापक स्व० डोरीलाल अग्रवाल,स्व० जैनेन्द्र कुमार ,स्व० क्षेमचंद ‘सुमन’ पद्म सिंह शर्मा ‘कमलेश’,बनारसीदास चतुर्वेदी जैसे प्रबुद्ध साहित्यकार जीवन पर्यंत मैत्रीक्लब के सदस्य बने रहे. बाद के वर्षों में भी इस क्लब में काका हाथरसी,विष्णुप्रभाकर,आचार्यसर्वे,अखिलविनय,कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’, ‘पद्मश्री’ गोपालदास ‘नीरज’, बुधमल शामसुखा, राजेंद्र अवस्थी, डा० महाराज कृष्ण जैन आदि मनीषी भी जुड़े. मैत्रीक्लब की गोष्ठियां को रावी हर वर्ष देश के विभिन्न स्थानों में नियमित रूप से आयोजित भी करते रहे. उनके निधन के बाद अब मैत्रीक्लब क्लब की गोष्ठियों में शिथिलता आ गयी है. मूलरूप से इस संस्था का उद्देश्य समाज में एक दुसरे के सुख-दुःख तथा आवश्यकताओं की जानकारी एवं पारस्परिक सहज सहयोग के द्वारा सच्चे एवं गहरे मानवीय संबंधों का निर्माण करना है.
मैत्रिक्लब शिविर में रावी मित्रों के साथ 

क्लब के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए 49 वर्ष पूर्व सन 1964 में रावी के संपादकत्व में ‘नए विज्ञापन’ मासिक पत्र का भी प्रकाशन किया गया. समाज एवं मानव की साधारण तथा असाधारण इच्छाओं ,आवश्यकताओं का विज्ञापक और पूरक यह मासिकी अपने आप में हिंदी की एकमात्र अनोखी पत्रिका है. साहित्य में ‘मनोविज्ञापन’ नाम की एक नयी विधा का विकास रावी ने इसी पत्रिका के माध्यम से किया था.
नए नगर का निर्माण भी रावी का एक विशिष्ट आयोजन रहा है इसकी आधार-शिला कैलास के निकट ही एक भूखंड(नयानगर) पर रखी जा चुकी है. जीवन निर्वाह की चिंताओं से मुक्त,मधुरतम मानवीय संबंधों और जीवन के उच्चतम विकास के साधन एवं सुविधाओं से संपन्न पचपन परिवारों को बसाने का रावी का सपना रावी के देहावसान से प्रभावित हो गया है. रावी का यह सपना कब और कैसे पूरा होगा ये उनके मित्रों के लिए अब चिंता की बात है.
 रावी का जीवन दर्शन मानव मानव का प्रेम तथा मानवीय संबंधों पर आधारित है. उनका विश्वास है कि दुनिया में वह सब कुछ है जो मानव की प्रगति और सुख सुविधाओं के लिए आवश्यक है. कोई भी दो मनुष्य यदि एक दुसरे के जीवन और ह्रदय में घुसकर अपनी इच्छा ,आवश्यकता और दुसरे की सुविधा के अनुसार खुलकर लेन देन कर सके तो उन दोनों की सुख समृद्धि में वृद्धि हो सकती है. षड्बिन्दु वृत्त योजना के द्वारा रावी ने अनेक मित्रों को इस दिशा में सफलता पूर्वक गहन प्रयोग के लिए अग्रसर भी किया है.
 रावी कभी पलायनवादी नहीं रहे और ना ही निराशावाद उन्हें प्रभावित कर पाया. रावी के साहित्य में वर्तमान कृत्रिम जीवन एवं कथित शिष्टाचार के संबंधों के प्रति समग्र क्रांति दृष्टिगोचर होती है. वे सरल,सहज,मधुरतम प्राकृतिक जीवन की पवित्रता के उपासक रहे हैं. जीवन को सहज रूप में जीने वाले रावी का सम्पूर्ण जीवन भले ही धनाभाव से ग्रसित रहा हो, लेकिन आध्यात्मिक सुखों के विशाल खजाने की चाबी सदा उनके पास रहने के कारण बहुतो को उनसे इर्ष्या ही रही है.     
रावी जी ब्लोगर सुनील अनुरागी  के साथ 
बहुमुखी,बहुआयामी प्रतिभा के धनी रावी को आज भी हिंदी जगत उपेक्षित ही कर रहा है. जबकि रावी का अधिकाँश साहित्य उच्चकोटि का विश्वस्तरीय है. यद्यपि रावी को कोई बहुत बड़ा पुरस्कार अथवा सम्मान नहीं मिला हो. वैसे भी साहित्य में राजनीति के प्रवेश ने सम्मानों को प्रभावित करना आरम्भ कर दिया है. लेकिन पाठकों के बीच रावी का सम्मान सर्वोच्च रहा है. इस बात को बड़े बड़े पुरस्कार प्राप्त साहित्कार भी मानते रहे हैं. हिंदी जगत को चाहिए कि रावी के व्यक्तित्व और कृतित्व का उचित मूल्यांकन कर उन्हें साहित्य जगत में उचित स्थान दिलाये. अगर  हिंदी जगत रावी का उचित मूल्यांकन करने में असमर्थ हुआ तो भविष्य में आने वाली पीढियां अपने एक महान जीवन-शिल्पी,चिन्तक,कथाकार को विस्मृति के गर्त में धकेल देगी निश्चय ही यह स्थिति हिंदी जगत के लिए अत्यंत दुर्भाग्य की बात होगी.
                                                                                                                      -सुनील अनुरागी